भोजपुरी मंथन

भोर / निलय उपाध्याय

भोर / निलय उपाध्याय

सरग के पार नदी में
छप-छप
नहातिया एगो मेहरारू

सोना के थरिया में अछत-दूब लेके
पुरइन के पतई प खाड़ होई
खाड़ होई
महावर से रचल पाँव

घूघ हटाई आ राँभे लागी गाय
घूघ हटाई
आ नाद प दउर जइहें बैल

झाड़ू उठाई
झक-झक साफ करी घर
चूड़ी बजाई… जगाई –
उठऽहो
जाय के बा तहरा
पहाड़ के ओह पार…

Exit mobile version