भोजपुरी मंथन

अब गैरियत के बात का मन हो गइल तमाम / कुलदीप नारायण ‘झड़प’

अब गैरियत के बात का मन हो गइल तमाम / कुलदीप नारायण ‘झड़प’

अब गैरियत के बात का मन हो गइल तमाम
तोहरे में हम समाइल, हमिता के अब न नाम

दउराइ रहल मनवाँ हमके कहाँ-कहाँ
जब गिर गइल बा हमरा हाथन से खुद लगाम

झगड़ा ई तबे ले रहल जब ले कि जिन्दगी
अब त चले के बेर भइल सबके राम-राम

पानी का बुलबुला के कतना बसात बा
पनिये के नकारेला पल भर के छूम-छूाम

गाड़ी रुकी कहाँ कही के एह हाल में
ठहरे-ठहर जे राह में लागल बा खूब जाम

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