आपन हमदर्द/ दीपक तिवारी
माई जइसन,प्यार करे,ना करि केहू,
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।
माई के अँचरा,जइसे छाँव, कहि मिले ना,
प्रभु के मरजी वगैर,जइसे पतई हिले ना।
सकून मिले,जवन ओतना,ना दीही केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।
फुसला के ऊ कहे,खाले तनी पीले ना,
अपना करेजावाँ के,एको छन,ढ़ीलें ना।
रोज ओकरा,लेखा धेयान,ना राखि केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।
माई अपने उपास रहे,चाहें कई दिना,
सुते ना देउ कहियो,बाकी खइला बिना।
उठs उठs,मोर सोना,कहि खियाई केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।
बाबू रहें,सही सलामत,सब करेली वरत,
जिनगी खत्म हो जाला,दुआ करत करत।
जगे ले नाही पाई,भले,लोग बने केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।
मिलेला सवाद बड़ा,माई हाथे खइला में,
बइठ के रोवेली माई,हाँ कुछो भइला में।
दीपक दिल के,दर्द दोसर,ना बुझी केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।