भोजपुरी मंथन

उमिर ढलल त का हो जाई ?/ जनार्दन प्रसाद व्दिवेदी

भोजपुरी मंथन

उमिर ढलल त का हो जाई ?/ जनार्दन प्रसाद व्दिवेदी

(1)
उमिर ढलल त का हो जाई ?
मन मजबूत जवान बनाई;
मन कमजोर बनाईं काहे ?
जे कुछ आई, देखल जाई ।
(2)
काहे गुमसुम ताकत बानी ?
मन ही मन का भाखत बानी ?
खुल के बोलीं, साफ बताई –
भीतर-भीतर का राखत बानी ?
(3)
सुख-दुख त हरदम आवेला,
जीतेला ऊ जे गावेला;
जे रोई से हरवे करी
ऊ कबहीं कुछ ना पावेला ।
(4)
बुरबक बइठल खउर रहल बा,
कर्मभूमि में मउर रहल बा;
बुद्धिमान का फुरसत नइखे-
देखीं दुनिया दउर रहल बा ।

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