भोजपुरी मंथन

का हो बबूनी – अरुण शीतांश

भोजपुरी मंथन

का हो बबूनी – अरुण शीतांश

अब घर के चबेनी के फाँकी?

के जाई गोबर ठोके?

केकर घर से आगी आई?

के माई के पउंवा दबाई?

के सोहर गाई ?

के झूमर पारी?

के अलत्ता से पाँव रंगी?

के गवना के बोलहटा दीही?

के भाई के चरण धोई?

बाबूजी के नाता छूटल जाता

गारी कोई ना गाई

का हो बबूनी काहे बाड़ू दुबराईल?

अब गेहुँ ना 

आटा पीसाई!

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