भोजपुरी मंथन

केहू पूछत नइखे/ डॉ॰ राजनारायण दीक्षित

भोजपुरी मंथन

केहू पूछत नइखे/ डॉ॰ राजनारायण दीक्षित

कब से तड़पत बानीं, लोग पसीजत नइखे,
जर-जर के जीयत बानी, केहू पूछत नइखे |
उमेद में उमिर बीत गइल बाट जोहते,
दिल में जगह अछइत, केहू बसत नइखे ।

लोगवा कहेला, दरद के दवाइयो दरदे होला,
बाकी हमरा दुख – दरद के केहू बूझत नइखे |
चुनावी घोषणा के दहार में दहा जाला सभे,
बाकी मंहगाई के माहुर के चूसत नइखे |

सुखार में सुखा गइल नेतन के वादा,
अब गरीबन के बात केहू सुनत नइखे |
कहे खातिर प्रजातंत्र, रंग बा रंगदारन के,
माफिया के डर से केहू खाँसतं नइखे ।

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