भोजपुरी मंथन

चइता/ डॉ॰ वसंत कुमार

भोजपुरी मंथन

फागुन के बचपन उतरि गइल हो चइता भइली जवान
मनवाँ में उतरल रतौंधी हो अँखियन में गुमान !
कोंची के झुमका सुहावन हो भौंरन के पाजेब
फुलवन के गजरा सुनहरा हो मोजर के करेज

टहटह अँजोरिया के देहिया हो उमिरा के उतान
चम चम चनरमा के टिकुला हो दुधिया मुसुकान

सेमर के अँखिया ढिठाइल हो ललिया गइल पोर
मधुआ के मातल नजरिया हो तिकवे चारु ओर

पलाइन के पातर चुनरिया हो पेन्हलो नाहीं जाय
पुरुवा के बहकल बेसरमी हो लहँगा उड़ि जाय

पिहिके पपिहरा दरदिया हो केहू ना पतिआय
कुहुके कोइलिया पीया बिनु हो देहिया पीयराय

मनवाँ में लेसे पियसिया हो कंठवा सूखि जाय
सुरुज के किरिनियाँ हो गरमी भरि जाय !

एक त लजाउर सजनियाँ हो अबहीं सुकवार
तेपर उमिरिया लचकि गइल हो तेपर मधुआ के भार !

गवना कराइ कन्त ले अइले हो गइले अपने दिगन्त
लागल करमवाँ में अगिया हो – पीया मिलले बसन्त !

Exit mobile version