चल चल रे मनवाँ गाँवे चलप्रेम के दउँरी दाँवे चल/ गोपाल ‘अश्क’
जवना खातिर शहर धइले,
ओकरे चलते जहर खइले !
जिनिगी मिलल ना मउअते मिलल,
कुछ त पावे गाँवे चल !!
चल चल…..
कगवा उचारत अबहूँ होई,
घरवा में तिरीया कबले रोई !
भरल सभा में किरिया जे खइले
ओके निभावे गाँवे चल !!
चल चल….
ई शहर ह केहू ना पूछे,
रात बीत जाला रे भूखे !
दिनवा में जरत रहेला रे जीवन,
ओके सेरावे गाँवे चल !
चल चल….
चल चल रे मनवाँ गाँवे चल,
प्रेम के दउँरी दाँवे चल !