भोजपुरी मंथन

झुर – झुर बहे पुरवइया/ डॉ॰ कमलेश राय

भोजपुरी मंथन

झुर – झुर बहे पुरवइया/ डॉ॰ कमलेश राय

सबेरे-भोरे झुर-झुर बहे पुरवइया ।

ढरकि-ढरकि जाय मोरा माथे कऽ अंचरा
बहहि – बहकि जाय मोरा अंखियन कऽ कजरा
भौंरा कऽ आस जोहे अल्हड़ अमरइया

प्राची के दरपन से नवप्रात जागे
घूंघट पट डारि राति सरमाके भागे
कलरव करि कूंजे बगियन में चिरइया

अलसाइल अंखियन में नीदि कऽ बसेरा
पायल के छम-छम में जागे सबेरा,
नदिया के धारा में बल खाये नइया ।

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