देखऽ अब का होला / चंद्रशेखर मिश्र
देखऽ अब का होला!
जवन कब्बो ना करे के
तवनो कइलीं
जहँवा गइले पाप परेला
तहँवो गइलीं
जनलस अरोस-परोस
जानि गयल टोला
देखऽ अब का होला !
कहलीं, त कहलन –
ई का कइलऽ?
गंगा के घरे जनमलऽ
गड़ही में नहइलऽ? !
का ऊ ना जनतन जे कमल –
गड़हिए में होला ?
देखऽ अब का होला !
सरग हमैं ना चाहीं
हम त पा गइलीं
केहू जरो
हम त जुड़ा गइलीं
तोहार नाँव लेके
पी गइलीं जहर
रच्छा करिहऽ भोला
देखऽ अब का होला !
उँह…!
जवन होए के होई
तवन होई
एह डरन मनई
कब ले रोई।
हमके ?
‘हरि प्रेरित लछिमन मन डोला’
देखऽ अब का होला !