भोजपुरी मंथन

धुरंधर – कैलाश गौतम

भोजपुरी मंथन

धुरंधर – कैलाश गौतम

बहै फगुनहट उडै धुरंधर
सोन किरवा अस मुड़ै धुरंधर।

गांव गली बारी बॅसवारी
डहरी डारी खेत कियारी
नहर क पुलिया ताल किनारे
डीह क चउरा नदिया नारे
मन्दिर कबौ मदरसा झाकै
उचक उचक पोखरा पर ताकै
छिन महुआ छिन छिन गुलमोहर
आज त ओकर दर्शन नोहर
बस मे देह न चित्त ठेकाने
तरई गिनै रात खरिहाने
जेतनै हंसै गावँ घर खुलके
ओतनै मन मे कुढै धुरन्धर
हवा बोलवै घाम बोलावै
बहरे चारों धाम बोलावै
घर मे कइसे रहै धुरन्धर।
केसे दुखड़ा कहै धुरन्धर॥

महुआ आम नीम से पूछै।
फिर लइकन के टीम से पूछै
कारें सोनवां लउकल कत्तौ
बिजुरी अइसन चमकल कत्तौ
ऑख मे आँख समाइल हउवै
कवनो चीज हेराइल हउवै
आन्हर कुकुर बतासे भूँकै
अन्है सबसे लड़ै धुरन्धर
दिन दिन भर ना खांय धुरन्धर
चाहै पर रहिजाय धुरन्धर
माई कहै कहा तू जाले
का पीयैले का तू खाले
बाप कहै मरजाय धुरन्धर।
जाय जहन्नुम जाय धुरन्धर॥

का कारन भउजाई पूछै
देह भइल चउथाई पूछै
भउजी आपन कसम धरावै
फागुन के जी भर गरियावै
केहू सुनै न पावै घर मे
बस भउजी से खुलै धुरन्धर
उहै धुरन्धर आवत हउवन
अपनै से बतियावत हउवन
अइसे ना ई अइसे होई
लेकिन के बिन्ध्याचल ढोई
सोचत अउर बिचारत हउवन
एकटक राह निहारत हउवन
बड़की पूजा करब भवानी
पत हमार राखा महरानी
कइसो बेड़ा पार लगावा
ई चिठिया तोहीं पहुँचावा
ई दर छोड़ कहाँ अब जाई
चउकठ पर सिर धुनै धुरंधर॥

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