भोजपुरी मंथन

ननदी रमल जाता…./ शम्भुनाथ उपाध्याय

भोजपुरी मंथन

ननदी रमल जाता…./ शम्भुनाथ उपाध्याय

सहमे महावरि निरेखि तोरे पउँ वाँ
ननदी रमल जाता मनवा ए गउँवाँ ।

सोचत रहली ससुरा में रहिए ना जाई
कइसे भुलइहे हमसे बाप माई-भाई
अब त भुलाइ गइल नइहर के नउँवा ।

भइया तोहार बसि गइले नयनवा
हवे भगवान उनकर धरीले धियानवा
हमके प्रयाग राज भईल ई ठउवाँ ।

सासु जी ससुरजी के सेवा में लगलीं
सजना सनेहिया में रतिया भरि जगलीं
यादि नाहीं आवे अब घुमरी परउवाँ ।

चहकी दुआर घर सुनऽ साल भीतरी
कहति रहे एक दिन दइया सबितरीं
गोदिया में खेलिहें तहार लाल जेउवाँ ।

बससु सुरसती तोरि जीभि लहुरी बबुनी
देइबि तोहें सोनवा के बाली आ नथुनी
तोहके पेन्हाइबि हम सरिया धरउवाँ ।

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