भोजपुरी मंथन

पतझड़ के महीनवाँ आईल सखी रेखिलल चमेलिया मुरझाइल सखी रे/ गोपाल ‘अश्क’

पतझड़ के महीनवाँ आईल सखी रेखिलल चमेलिया मुरझाइल सखी रे/ गोपाल ‘अश्क’

बड़ा जतन करि खोंतवा बनवनीं,
उ खोंतवा में नेहिया बसवनी !
बाट जोहत अँखिया पथराइल सखी रे,
खिलल……

केतना नजरिया से बाँचल जवानी,
टप-टप चुये जइसे चुये ओरियानी !
रतिया के अँखिया लोराइल सखी रे !
खिलल…..

कइसे समुझाईं कइसें लीहीं थाती,
बीत गइल रोअते चार दियरी-बाती !
पतिया बलम के एको ना आइल सखी रे !
खिलल…..

जाई के कहि दे हे पुरुवा बेयरिया,
घरवा में तड़पेले सोन चिरइया !
सौतिन के सुबहा मन में समाइल सखी रे !
खिलल……

पतझड़ के महीनवाँ आईल सखी रे.
खिलल चमेलिया मुरझाइल सखी रे !

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