पानी में मीन पियासी/ डॉ॰ (प्रो) अरुण मोहन ‘भारवि’
पानी में मीन पियासी,
मोहि सुन-सुन आवत हाँसी
आतम ज्ञान बिना नर भटके,
कोई मथुरा कोई काशी।
जैसे मृगा नाभि कस्तूरी,
बन-बन फिरत उदासी ।। 1।।
जल बिच कमल, कमल बिच कलियाँ
तापर भँवर निवासी।
सो मन बस त्रैलोक भयो है,
यती सती संन्यासी । । 2।।
जाको ध्यान धरे विधि हरिहर
मुनि जन सहस अठासी ।
सो तो घट माहिं बिराजे,
परम पुरुष अविनाशी ।। 3 ।।
है हाजिर तोहि दूर दिखावे
दूर की बात निरासी
कहै कबीर सुनो भाई साधो,
गुरु बिन भरम न जासी ।। 4 ।।