भोजपुरी मंथन

पुरवा सजोर……/ ब्रजेन्द्र कुमार सिन्हा

पुरवा सजोर……/ ब्रजेन्द्र कुमार सिन्हा

बहे लागे पुरवा सजोर,
उड़े लागे अंचरवा के कोर.

अमवा के गछिया लागे करूआइन
पिपरा का पतिया से का बतिआई

डोले लागेला डेहुँगी झकझोर,
उड़े लागे अंचरवा के कोर.

पासे पड़ोसीन मारे टिटकारी
गँइआ के देवरा करे बटमारी

पुरवइया टीसे पोरे-पोर,
उड़े लागे अचरवा के कोर.

गेंहुँआ के उठिया गइल मउराई
ओठे अंचरवा के केतना दबाई

नीको ना लागेला ननदी के सोर,
उड़े लागे अचरवा के कोर.

मन महुआ त बाटे महुआइल
देखी टिकोढ़वा के मन अगराइल

ना जाने जिनगी के कब होइहे भोर,
उड़े लागे अचरवा के कोर…………

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