फुलवा महँकि भरमावेले/ डॉ॰ राम सेवक ‘विकल’
के हरि हउवें फुल बगिया के माली हो
के हरि फूल बिहँसावेलें हो ?
के हरि तितली के भेजि भेजि कलियन पर
रसगर नेहिया लगावेलें हो ?
के हरि बिहँसेले राति के अँजोरिया में
के हरि सुरुज उगावेलें हो ?
केकरी करनवाँ ई दमके धरतिया हो
के जल थल उजियावेलें हो ?
केकरा सनेहिया में अहकत जियरा हो
के नित मरम जनावेलें हो ?
कहवाँ छिपेलें अग-जग के बटोहिया हो
प्रेम अगिनि सुनगावेलें हो ?
हेरि हेरि हारि गइलीं वोहि फुलवरियाँ में
अपना के जेमें लुकवावेलें हो
एक बेरी खोजलीं बइठि अपना मनवाँ में
फुलवा महँकि भरमावेलें हो ।