बिहाने बेरिआ/ रामाज्ञा प्रसाद सिंह ‘विकल’
बोली कुचकुचवा बिहाने बेरिआ ।
कतना बारात एकर रउरा ना बूझ वा
निसि निसि रतिआ के तनिको ना सूझ बा
देखीं ना दलीची से रतिआ के रूपवा
लउकेना कुछउ अन्हारे मारे कृपवा
सिरवा पर सोहे सतभइया तिनडोरिआ,
बोली कुचकुचवा बिहाने बेरिआ ।
ना सुधर सुहावन पिया लागे अन्हरिआ,
सूझे तनिको भर ना अंगना दुअरिआ
होते बिहान इहाँ कोइली के गीत आई
सुतलो संईया तोहरा निनिआ के जीत जाई
पुरुब से आ जाई मिठकी बेअरिआ,
बोली कुचकुचवा बिहाने बेरिआ ।
पहिले चिरइअन के टूट जाई निनिआ,
आई बिहान ले ले पहिलि किरिनिआ ।
साथ हीं सासु के निनिआ परा जाई,
उठ जइहें गगरी ले बड़की गोतनिआ ।
छोड़िके जइहें पिया सूनी सेजरिआ,
कुचकुचबा बिहाने बोली बेरिआ ।