भोजपुरी मंथन

मुकरनी/ दिनेश पाण्डेय

मुकरनी/ दिनेश पाण्डेय

परले गोड़ हजार बे, पूरल जिय अरमान।
थरिया पलटसि पाइ के, सखि पिय ना जनमान।

बात करेजा के छुवल, दुनिया लागे बाध।
हित-मित मुदई करि गइल, पियवा ना सखि साध।

अपने चाभस सात रस, हम धाँसीं मँड़गील।
कहईं के ना छोड़ले, सखि पिय ना ओकील।

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