विदाई/ सौरभ भोजपुरिया

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विदाई/ सौरभ भोजपुरिया

आँख से दूर भले तू हमरा दिल से कहाँ जइबू
हर सांस में अपना मोहे दिल के अंदर पईबू
जइसे गलेला मोम हो अन्हरिया के बिदाई में
वइसे लोर के मोती गिरेला तहरा जुदाई में
तू मोर आंगन से दूर पर मन के दिवार में रहबू
बन के मन चिरइया खुद के इंहा चहकत पइबू ।।

कके के सोलहो श्रृंगार पिया के नगरिया में जइबू
हमरा के अपना याद में छछनत पइबू
तू माया नगरिया से दूर बाकिर चित्तवन से कहाँ जइबू
साया लेखा हमरा के सातों जन्म में साथे पाइबू ।।

जानत बानी की जात बाड़ू तोहके केहु रोकी ना
बाकी हमरो के तहरा याद में डूबला से केहु टोकी ना
आज करत बानी हरीहर डोली में तहार बिदाई
कबो हंस के कबो रो के जिनगी के बाचल पल के बिताईब
जब जान मोर पंचतत्व में तू बिलिन हो जइबू
मोहे बटोही अस आस में राह निहारत पाइबू।।

मन के भीतर एगो महल बनाईब
ओमें तहार मूरत बिठाइब
याद के बगिया में एगो ललका गुलाब लगाईब
बन के भावरा तोहर गीत गजल गुन गुनाइब
जब लालकी चुनारिया ओढले खिली रूप फूल
तहरा प्यार के खुशबु दसो दिशा में गमकाइब ।।

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विदाई/ सौरभ भोजपुरिया - भोजपुरी मंथन