सूखा/ राम जियावन दास ‘बावला’
कइसन बा राउर विधान हो विधाता
धक्-धक् करेला परान
पनियां सपनवा मोहाल बा पतउवा
दागि-दागि पेट रही जाले बचउवा
छुप गईले केतनन क चान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।
डकरेले गोरुवा बताव कहाँ जाई
जरत सरेहिया तिरीं कहाँ जाई
होई जाई देसवा मसान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।
अंसुवा क सिंचल बेइल कुम्हिलाइल
केकरे बेसहले विपति अगराइल;
झंखत बा खेत-खलिहान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।
अगिया लगाय के कवन कल पवले
यही महँगाई में चक्कर चलवले
“बावला” भईल इन्सान हो विधाता, धक्-धक् करेला परान।