हवा/ डॉ॰ गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’
हवा बताव तू केकरा अँगना से होके अइलू ह ऽ
सोन सुगंध भरल गगरी कवना पनघट से लइलू हऽ
नहा, नहा के चंदन से, नन्दन वन में मुस्कइलू ऽ
बालक, बूढ़ जवान, तू सबकर हियरा के हरसइलू
कवने अमराई से रस ले ले के आज रसइलू ह ऽ
कनखी से ताकेलू सबकर होश हवास हेराला
पोर पोर तन मातेला, मन कोर कोर अगरालो
भर भर अंजुरी नेह के इत्तर चारू ओर लुटइली हऽ
आज सुरूजवा तोहरा के सतरंगी चुनर ओढवलें
धरती से आकाश तले नेहिया के तार जड़वलें
हरदम नये नये लागेलू कवना घाट नहइलू ह ऽ
कहाँ तरान परान के तनिको सबकर मन उफनाला
फूलपात चिरई चुरूंग सबलोग बाग उबिआला
कवन खसूर भइल भारी जे हमनी से रिसिअइलू ह ऽ
नस-नस में मधुआ के रस, घोर मदमस्त बनाव
सुखल कंठ झुराइल मुँह पर, अमरीत रस बरसाव
तावे भाव बढ़ल बा लागे, ओही से अगरइलूह ऽ
हवा बताव…….