जुग पुरुष कहावऽ / वेद प्रकाश व्दिवेदी
हो भाई सुनऽ, अपने मत धुनऽ;
दोसरो के बतिया के मनवा में गुनऽ ।
सही बात सोचऽ, मुँहवा मत नोचऽ;
बात मत बनावऽ, काम करऽ आवऽ ।
काम बहुत ढेर बा, हो गइल देर बा;
हठ मत ठानऽ, बात असल जानऽ 1
बाबू ना भइया, जग में रुपइया ।
इहे ना रहे त के पुछवइया ?
नीती ना धरम, घूस असल करम ;
दोसर अपहरन, एमें का शरम ?
एहू से बढ़िया आउर एगो काम बा;
ओकरा में एही रवानी फायदा आ दाम बा ।
करऽ रंगदारी, मेटावऽ बेकारी;
इहो सफलता के बढ़िया सवारी ।
फायदा उठाव खुशी-खुशी गावs ;
घरे आ बाहर जुग पुरुष कहावऽ 1